चैतन्य भट्ट
अपने बड़े बूढों से हमेशा यही सुनते आए हैं कि संतोषी सदा सुखी, यानी जो हर चीज में संतोष कर लेता है वो सदा सुखी रहता है लेकिन केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने बड़ी गजब की बात कही, वे कह रहे हैं कि राजनीति में मुख्यमंत्री हमेशा डरा डरा रहता है। अपन तो ये मानते थे कि किसी भी प्रदेश का मुख्यमंत्री सबसे ताकतवर होता है उसके सामने बड़े-बड़े पानी भरते हैं लेकिन गडकरी जी कह रहे हैं कि वो हमेशा डरा-डरा रहता है उन्होंने ये भी बता दिया कि वो क्यों डरा डरा रहता है। दरअसल उसे इस बात का डर लगा रहता है कि पता नहीं कब हाई कमान का फोन आ जाए कि आप इस्तीफा दे दीजिए सुबह, दोपहर, शाम जैसे ही फोन की घंटी बजती है उसकी दिल की धडक़नें उसी स्पीड से बढ़ जाती है गडकरी जी ने ये भी कहा कि राजनीति ‘अतृप्त आत्माओं’ का संसार है जहां हर व्यक्ति दुखी है यहां कोई भी संतुष्ट नहीं होता पार्षद चाहता है कि वो विधायक बन जाए, विधायक चाहता है वो मंत्री बन जाए, मंत्री चाहता है वो मुख्यमंत्री बन जाए, मुख्यमंत्री चाहता है वो प्रधानमंत्री बन जाए, वैसे आजकल राजनीति क्या दुनिया में कोई भी व्यक्ति संतुष्ट नहीं है। हम लोग जब छोटे थे किसी को साइकिल चलाते हुए देखते थे तो सोचते थे यार साइकिल मिल जाती तो कितना अच्छा होता, जब साइकिल मिल गई तो लूना की तरफ निगाहें दौड़ाने लगे, लूना मिली तो स्कूटर की कल्पना करने लगे, स्कूटर मिल गया तो कार के सपने देखने लगे जब कार मिल गई तो और बड़ी कार की इच्छा होने लगी। किसी भी उद्योगपति को देख लो, चार उद्योग चल रहे हैं सोचता है चार और हो जाए, आठ हो गए तो सोचता है सोलह हो जाए शादी करने वाला लडक़ा सोचता है खूबसूरत बीवी मिल जाए, खूबसूरत बीवी मिल जाए तो भी पड़ोसन की तरफ निगाह डालने लगता है। स्कूलों में विद्यार्थी सोचते हैं फस्र्ट डिवीजन आ जाए, फस्र्ट डिवीजन आ जाते हैं, तो सोचते हैं मेरिट में आ जाए, मेरिट में आते हैं तो सोचते हैं कि टॉप कर लें टॉप कर लेते हैं तो सोचते हैं कि पूरे प्रदेश में टॉप में नाम आ जाए, कुल मिलाकर कोई संतुष्ट नहीं होता पूरी दुनिया ‘अनसेटिस्फाइड’ लग रही है जो किराए से रह रहा है वो सोचता है कि एक बेडरूम का ही अपना घर हो जाए, एक बेडरूम का मिल जाता है तो सोचता है यार दो बेडरूम का होता तो कितना अच्छा था, फिर वो भी खरीद लेता है तो फिर सोचता है कि थ्री बैडरूम होता तो और आनंद आता जब यह भी संभव हो जाता है तो सोचता है यार स्वतंत्र बंगला होता तो कितना बेहतर होता। इंसान की फितरत थी ऐसी हो गई है कि उसे किसी चीज से संतुष्टि नहीं होती ऐसे में अगर राजनेता संतुष्ट नहीं है तो उन बेचारों का क्या दोष? और वैसे भी उनकी गद्दी उनकी नीचे से कब खिसक जाए ये तो भगवान भी नहीं जानता, वैसे गडकरी जी ने जो बात कही है अब तो अपने को लगने लगा है कि जिस मुख्यमंत्री को अपन सबसे ज्यादा ताकतवर और दमदार मानते थे वह असल में एक डरा हुआ राजनेता होता है और उन पर ये पंक्तियां पूरी तरह फिट बैठती हैं
‘ये नयन डरे डरे, कल की किसको खबर एक रात हो के निडर मुझे जीने दो’
इतिहास पलटता है
नितिन गडकरी जी ने जो कुछ भी कहा था वो महाराष्ट्र में पूरी तरह से साबित हो रहा है। एक जमाना वो था जब ‘देवेंद्र फडणवीस’ प्रदेश के मुख्यमंत्री हुआ करते थे फिर शिवसेना ने बगावत करके बीजेपी से हाथ मिला लिया अब चूंकि शिवसेना का हाथ ऊपर था इसलिए फडणवीस जी की जगह शिंदे जी को मुख्यमंत्री कुर्सी पर बैठा दिया गया बेचारे फडणवीस जी मन मार कर उपमुख्यमंत्री बनकर रह गए बार-बार मन में टीस उठती थी कि यार बताओ क्या से क्या हो गया, लेकिन कहते हैं ना इतिहास पलटता रहता है इस बार के चुनाव में बीजेपी ने बंपर वोट पाए कि देवेंद्र फडणवीस जी की चांदी हो गई शिंदे जी ने और उनकी पार्टी ने खूब कोशिश की कि वे ही मुख्यमंत्री बने रहे लेकिन इस बार किस्मत दगा दे गई और फडणवीस जी फिर उसी गद्दी पर आसीन हो गए जिस गद्दी से उन्हें उतार कर उनसे छोटी गद्दी दे दी गई थी बेचारे शिंदे जी अब मन मार कर बैठे हैं चलो भैया उपमुख्यमंत्री तो बने हैं। बीच में जरूर उनकी नाराजगी की खबरें आई थी लेकिन उनके ही लोगों ने समझाया है कि भैया जो मिल रहा है ले लो, मुंह फुलाने से कुछ नहीं होने वाला बीजेपी ने अपने दम पर लगभग लगभग बहुमत भी लिया है ज्यादा नाराजगी दिखाओगे तो और किसी को साथ रखकर सरकार बना लेंगे सरकार में रहेंगे तो कुछ ना कुछ होता रहेगा काम चलता रहेगा ।वैसे उप मुख्यमंत्री नाम का ही होता है स्थिति तो उसकी मंत्री जैसी ही होती है लेकिन कहते हैं ना ‘भागते भूत की लंगोट ही सही’
दरुआ रोबोट
अमेरिका वाले भी पता नहीं क्या-क्या बनाते रहते हैं पता चला है कि उन्होंने एक ऐसा रोबोट बनाया है जो बिना दारू पिए एक कदम आगे नहीं बढ़ता और वो भी कोई छोटी मोटी सस्ती दारू नहीं ‘वोदका’ जब तक उसके मुंह में वोदका का पैग न डालो तब तक वह दो कदम भी नहीं चलता। लगता है इस रोबोट ने अपने देश के दारुखोरों से शिक्षा ली होगी क्योंकि अपने यहां भी कई ऐसे हैं जो बिना दारू पिए एक कदम भी नहीं बढ़ते वैसे दारुखोरों को कोसना नहीं चाहिए क्योंकि अगर ये ना हो तो सरकारें नहीं चल सकती। दारू पीने वाले दारू पीते हैं और उधर पैसा सरकार के खजाने में जाता है। लोग बाग बेवजह उन्हें बदनाम करते हैं अपना मानना तो यह है कि ये दारूखोर ही देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है ऐसा लगता है कि अमेरिका का यह रोबोट पिछले जन्म में कोई बहुत बड़ा दरूआ रहा होगा और इस जन्म में रोबोट बन गया। लेकिन जिसने भी इस रोबोट को लिया होगा उसका दारू का खर्चा तो निश्चित तौर पर बढ़ गया होगा।’
सुपरहिट ऑफ द वीक
‘अगर लड़कियां पराया धन होती हैं तो लडक़े क्या होते हैं’ श्रीमान जी से उनके एक मित्र ने पूछा
‘वो चोर होते हैं ’
‘कैसे’ मित्र ने फिर पूछा
‘क्योंकि चोरों की नजर हमेशा पराए धन पर होती है’ श्रीमान जी ने समझा दिया।