मामला भाजपा नगर अध्यक्ष पद का
जबलपुर (जयलोक)। भाजपा के नगर अध्यक्ष के चुनाव का मामल रोज किसी ना किसी कारण से घोषणा के लिए अटक रहा है। रोजाना की तरह आज भी यही अटकलें लगाई जा रही हैं कि आज देर शाम तक सूची जारी हो जाएगी। वहीं दूसरी ओर सूत्रों से यह जानकारी भी प्राप्त हुई है कि 60 संगठात्मक जिलों में से 12-15 बड़े जिलों में जो निर्णय अटका हुआ है वहाँ के दिग्गज और प्रभावी नेताओं का यह वाजिब तर्क मजबूती से खड़ा है कि जब उनके गृह जिले की जिम्मेदारी संगठन और राज्य एवं देश के वरिष्ठ नेता से लेकर संगठन तक उनके ऊपर सौंपता है एवं क्षेत्र में होने वाले किसी भी उपचुनाव या बड़े चुनाव को लेकर जीत हार की जवाबदारी उनकी रहती है। वरिष्ठ नेताओं के आगमन पर सभा स्थल की गरिमा पूर्ण स्थितियां बनाने की जवाबदारी भी उनकी होती है। तो फिर नगर अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद के निर्णय में भी उनकी पसंद को महत्व मिलना ही चाहिए। यह पूरा कार्य तालमेल पर चलता है। संगठन को मजबूती से चलाना और पार्टी के मंशा के अनुरूप कार्य करना उस क्षेत्र के दिग्गज नेता का कार्य है तो फिर दिग्गज नेता और नगर संगठन के पदाधिकारी के बीच में भी बेहतर तालमेल होना बहुत आवश्यक है।
यह स्थिति जबलपुर जैसे महानगरों के अलावा आसपास के अन्य बड़े जिले में भी निर्मित नजर आ रही है। यह बात बिल्कुल सत्य है कि भाजपा लंबे अरसे से सत्ता में बनी हुई है जिसके कारण सक्षम और प्रभावी नेताओं की संख्या दावेदार के रूप में बहुत अधिक हो गई है। सूत्रों के अनुसार जो गुटबाजी चल रही है उसके भी अलग अलग पहलू हैं। इन सब के बावजूद प्रदेश संगठन को इस बात को ध्यान में रखकर ही तालमेल बनाना है कि दिग्गजों की मंशा और संगठन की गाइडलाइन दोनों का पालन ज्यादा से ज्यादा नजर आ सके।
पैनल में भेजे गए नाम अपनी जगह महत्व रखते हैं। लेकिन यह तर्क बहुत महत्वपूर्ण है जो क्षेत्रीय दिग्गज और प्रभावी नेताओं के द्वारा राष्ट्रीय और प्रदेश संगठन के समक्ष रखे जा चुके हैं कि अगर उनके गृह जिले की या प्रभाव वाले क्षेत्र की जिम्मेदारी उनको दी जा रही है तो फिर उनके जिले का अध्यक्ष भी उनकी ही पसंद का ही होना चाहिए। बेहतर तालमेल से ही संगठन मजबूती से कार्य कर पाएगा। वहीं दूसरे तर्क इस प्रकार के भी रखे जा चुके हैं कि अगर जिलों में गिने चुने लोगों की पसंद ही चलेगी तो फिर पार्टी के अंदर मोनोपली चलने लगेगी और निष्पक्षता, पारदर्शिता की बातें लोकतांत्रिक भाजपा के नारे खतरे में पड़ जाएंगे।
बहुत से जिलों में संगठन नहीं ले पाए आकर
प्रदेश संगठन के समक्ष बहुत सारे तर्क वितर्क के साथ बातें पहुंची हैं। इसमें एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि प्रदेश के कई ऐसे जिले हैं, जहां पर नगर अध्यक्ष की घोषणा तो हुई, लेकिन जिले में हावी दिग्गजों के बीच की रस्साकसी के कारण वह अध्यक्ष अपनी कार्यकारिणी का विस्तार नहीं कर पाए। यह बात सत्य है की जबलपुर भी इसी परिस्थितियों से गुजरा है। वर्तमान में अंदरूनी उठापटक बहुत अधिक है। सब अपने अपने पसंद के अध्यक्ष के नाम पर तुरंत मोहर लगवाने चाहते हैं। स्थिति इतनी कठिन हो गई है कि अब तो नामों पर अनुमानों के गणित भी फेल हो चुके हैं और लोग सिर्फ और सिर्फ घोषणा का इंतजार कर रहे।
घोषित होने वाले अध्यक्ष किसी भी बड़े नेता के घर नहीं जाएँगे स्वागत करवाने
प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने घोषित होने वाले नए नगर अध्यक्ष को ध्यान में रखते हुए एक हिदायत पहले ही जारी कर दी है कि निर्वाचित होने वाले किसी भी जिले के कोई भी नए अध्यक्ष किसी भी नेता के घर जाकर स्वागत और आभार प्रदर्शन के कार्यक्रमों से दूरी बनाकर रखें और खुद को इससे बचाएं। निर्वाचित होने वाले नए अध्यक्षों का पार्टी कार्यालय में ही स्वागत और आभार का कार्यक्रम आयोजित किया जाए। नए अध्यक्ष का सभी कार्यकर्ता स्वागत करें। संदेश स्पष्ट है कि नगर अध्यक्ष का स्वागत जिसको भी करना हो चाहे वह बड़ा नेता हो या सामान्य वह पार्टी कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम में ही स्वागत करे। बदलने वाले अध्यक्ष के प्रति आभार व्यक्त किया जाए एवं निर्वाचित अध्यक्ष का स्वागत किया जाए।
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