चैतन्य भट्ट
(जय लोक)। अपने जबलपुर का ‘डुमना एयरपोर्ट’ बड़ा पुराना माना जाता है कुछ समय पहले उसको नया, भव्य और विस्तृत रूप देने के लिए काफी बड़ी राशि स्वीकृत की गई थी लंबे अरसे तक उसमें काम चलता रहा और लगभग 450 करोड़ रूपया खर्च करके उसे एक नया लुक दे दिया गया, लेकिन किस्मत तो देखो डुमना एयरपोर्ट ने सजावट तो ढेर सारी कर ली, पाउडर लगा लिया, स्नो भी रगड़ लिया, इतर भी छिडक़ लिया लेकिन जिन हवाई जहाजों का वो रास्ता देख रहा था वे सब उसे कट मार कर और कहीं निकल गए, जैसे तैसे कभी कभार एक दो प्लेन उसकी गोद में आ बैठते थे उन्होंने भी उससे मुंह मोड़ लिया और उसकी तरफ देखना भी बंद कर दिया। अपने एयरपोर्ट वाले भारी परेशान है कि सजावट तो ढेर सारी हो गई लेकिन इस सजावट का खर्चा निकले तो निकले कैसे? क्योंकि प्लेन तो है नहीं, जबलपुर के लोग ट्रेन से, अपनी गाड़ी से, बसों से यहां वहां जाते रहते हैं तो अपनी एयरपोर्ट अथॉरिटी को एक सलाह है कि जब वहां हवाई जहाजों ने आना ही छोड़ दिया है तो उसके पैसे वसूल करने के लिए बहुत सारे उपाय किए जा सकते हैं मसलन, उस इलाके में प्रदर्शनी नहीं लगती है इलाके के लोगों को शहीद स्मारक में आकर प्रदर्शनी देखना पड़ती है एक परमानेंट प्रदर्शनी उधर लगा दी जाए, बड़े-बड़े झूले लगा दिए जाएं, खाने पीने के स्टाइल लग जाए, छोटे बच्चों के लिए ‘टॉय ट्रेन’ चला दी जाए, इसके अलावा जो लोग साइकिल सीखना चाहते हैं, स्कूटी सीखना चाहते हैं या फिर कार सीखना चाहते हैं उनके लिए भी वहां भारी जगह है अच्छी खासी फीस दो और जो चाहो सीखो, शादी ब्याह के लिए भी ये जगह मुफीद है पार्किंग के लिए भी ढेर सारी जगह मिल जाएगी और टेंट जितना बड़ा लगाना चाहे लग जाएगा, अच्छी खासी इनकम भी होगी शादी ब्याह में, वैसे भी आजकल तो आउट में जाकर शादी करने का फैशन चल गया है क्योंकि शहर में ना तो इतने बड़े होटल है और ना पार्किंग की जगह है, उधर तो ढेर पार्किंग ही पार्किंग है जहां चाहे अपनी कार खड़ी कर लो इसके अलावा खेल के मैदान के रूप में भी उसका उपयोग किया जा सकता है। क्रिकेट हो ,बैडमिंटन हो, वॉलीबॉल हो इन सबके लिए भी ये जगह बहुत मुफीद है इसके अलावा राइट टाउन स्टेडियम की तर्ज पर मॉर्निंग वाक करने वालों से भी फीस लेने लगो, इन तमाम व्यवस्थाओं से भी काफी पैसा इक_ा हो सकता है और उससे वहां के जो कर्मचारी हैं उनका वेतन तो निकल ही जाएगा साथ ही साथ जो पैसा उसके निर्माण कार्य में लगा है वह भी काफी हद तक वसूल हो जाएगा। वैसे भी हफ्ते में एकाध प्लेन आने जाने की उम्मीद रहती है तो जिस दिन वो प्लेन आने वाला हो उस दिन तमाम लोगों को रोक दिया जाए या फिर इतना बड़ा एयरपोर्ट जब ही बन गया है तो कहीं भी कोने में उस प्लेन को उतार दिया जाए एक प्लेन के लिए इतनी बड़े एयरपोर्ट की जरूरत ही क्या है? अपन ने तो लाख टके की सलाह दे दी और इस पर गंभीरता के विचार करना बहुत जरूरी है।
रिक्शा, तांगा, ऑटो की भी उम्मीदें जग गई
बरसों हो गए जब से लोगों ने टेंपो के दर्शन नहीं किए हैं। अपने जबलपुर में ‘समोसा कट टेंपो’ जब चला करते थे उसमें ठूंस ठूंस कर सवारियां भरी जाती थी फट फट की आवाज करता हुआ जब टेंपो निकलता था तो लोगों के चेहरे पर नूर आ जाता था कि भले ही ये ढ़चर पचर करते हुए, काला स्याह धुआं फेकते हुए चले लेकिन गंतव्य तक पहुंचा देगा, लेकिन न जाने क्या हुआ टेंपो पर सरकार की नजर लग गई और देखते ही देखते ये टेंपो सडक़ों से विलीन हो गए ,पर हाल ही में अपने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने एक बार फिर टेंपो की याद दिला दी, जिन लोगों ने टेंपो में यात्राएं की उनके सबके घाव हरे हो गए, टेंपो का भी सम्मान बढ़ गया क्योंकि उसका नाम कोई छोटे-मोटे नेता ने नहीं बल्कि बीजेपी और देश के सबसे शक्तिशाली नेता ने लिया था, कितनी ही नई-नई गाडिय़ां निकल आए लेकिन आज भी टेंपो का क्या जलवा है यह प्रधानमंत्री जी ने बता दिया उनका कहना था कि राहुल गांधी आजकल अडानी अंबानी का नाम नहीं लेते, लगता है टेंपो में नोट भर भर कर उनके पास पहुँच रहे हैं बड़ी-बड़ी लग्जरी कारें, चारों तरफ से बंद ट्रक, ऑटो के बावजूद यदि माल टेंपो में जा रहा है तो इससे टेंपो की क्या अहमियत है इससे पता लगता है। जब से टेंपो की बात चली है तब से साइकिल, रिक्शा, ऑटो, साइकिल, तांगा और ई-रिक्शा की उम्मीदें भी लहरा कर उठने लगी हैं उन्हें लगता है की मृत हो चुके टेंपो को जब इतना सम्मान मिल सकता है तो वे तो अभी भी सडक़ पर अपना वजूद बनाए हुए हैं, हो सकता है कल के दिन यह बात कही जाने लगे कि कांग्रेस को तांगे में, साइकिल, में रिक्शा में, ऑटो में या फिर साइकिल के करियर में नोटों के बंडल पहुंचाए जा रहा हैं कहते हैं ना कि सबका अपना एक टाइम आता है जिन टेंपो को लोग भूल चुके थे उनकी यादें फिर से ताजा हो गई लेकिन एक बात समझ में नहीं आई कि आजकल के इस युग में जब पान गुटखा और चाय के पैसे आदमी ऑनलाइन चुका रहा है तब ऐसे में इतने बड़े लोग टेंपो में नोट भला क्यों भेजेंगे और फिर उस कांग्रेस को जिसकी सरकार आने की अभी दूर-दूर तक कोई उम्मीद दिखाई नहीं देती ऐसा भाजपा के नेता कहते हैं। बहरहाल टेंपो अपनी किस्मत पर मुस्कुराकर कॉलर खड़ी करके यही कह रहा है देख मेरा जलवा ,तमाम वाहनों के बावजूद प्रधानमंत्री जी ने सिर्फ मेरा नाम लिया इससे समझ लो कि मेरी इंपोर्टेंस आज भी उतनी ही है जितनी बरसों पहले थी इसलिए भी तो यही कहा जाता है ‘ओल्ड इज गोल्ड’ यानी पुरानी चीज आज भी सोने के बराबर होती है। जिन लोगों ने टेंपो चलाई है या उसमें यात्रा की है उनकी निगाहों के सामने वे तमाम दृश्य उपस्थित हो गए जब वे टेंपो में यात्रा करते होंगे लेकिन एक बात आज तक समझ में नहीं आई कि सैकड़ो की संख्या में चलने वाले तिकोना टेंपो आखिर गए तो गए कहां वो तो अच्छा हुआ प्रधानमंत्री जी ने टेंपो की याद दिलाकर उसको जीवन दे दिया अब रिक्शा, तांगा, साइकिल, ऑटो सब रास्ता देख रहे हैं कि कब प्रधानमंत्री जी या भाजपा के नेता उनका नाम लें और उनका भी जलवा बन जाए।
मुंह दिया है तो बोलेंगे ही
कांग्रेस के नेताओं का साफ साफ कहना है कि देखो भैया जब ऊपर वाले ने हमको ‘मुंह’ दिया है तो फिर हम तो बोलेंगे, जिसको बुरा लगे तो लगता रहे, पार्टी की भद पिटती रहे तो पिटती रहे लेकिन हम अपने मुंह का भरपूर उपयोग करेंगे वरना जब ऊपर जाएंगे और भगवान पूछेंगे इतना बड़ा मुंह दिया था तुमने उसका क्या किया तो हम क्या जवाब देंगे, इसलिए हमें जो भी अच्छा लगता है वो हमारे मुंह से निकल जाता है वैसे भी मुंह हमारे बस में नहीं है हम लाख मना करें लेकिन वह जब बोलने पर उतारू होता है तो फिर हम भी कुछ नहीं कर पाते। कांग्रेस इन सब को लेकर भारी परेशान है क्योंकि इधर कांग्रेसी नेताओं के मुंह से कुछ निकला और उधर भाजपा ने उसको लपका और ऐसी भिनिष्ठा उसकी उन बयानों की करते हैं कि जनता को लगता है कि सचमुच में कांग्रेस उनकी दुश्मन बन गई है चाहे मणि शंकर हों, सैम पित्रोदा हों,जीतू पटवारी हों, कांतिलाल भूरिया हों सबका मुंह एकदम आजाद है कोई रोक-टोक नहीं जो मर्जी आए बोल दो फिर बाद में उसका खंडन मंडल करते चलो, लेकिन कहते हैं ना कि जुबान से निकला शब्द और धनुष से निकला तीर कभी वापस नहीं होते, इस चक्कर इन सबके बयानों से पार्टी की कैसी लाइ लुटी जा रही है, भाजपा वाले इन नेताओं के बयानों का तरह-तरह का अथज़् निकाल कर जनता के सामने रख रहे हैं इससे उनका कोई लेना देना नहीं, कांग्रेसी कहते हैं की देखो हमारी पार्टी में कितना जबरदस्त ‘लोकतंत्र है किसी के बोलने पर कोई रोक नहीं जो चाहे वो बोल सकता है लेकिन भैया इसको लोकतंत्र नहीं कहते बल्कि ‘अराजकता’ कहते हैं और इन्हीं मुंह के चक्कर में आपके सबसे बड़े नेता को भी कोर्ट में माफी मांगना पड़ी थी। भगवान ने यदि मुंह दिया है तो उसके साथ-साथ दिमाग भी दिया है कि जो आप अपने मुखारविंद से निकलना चाहते हैं उसके पहले दिमाग से इसका आकलन कर लो कि इससे पाटीज़् को नुकसान तो नहीं होने वाला लेकिन आपको दिमाग से ज्यादा अपने मुंह पर भरोसा है तो ठीक है बोलते रहो और गाना गाते रहो ‘हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है’
सुपर हिट ऑफ द वीक
‘यदि तुमने मुझसे शादी नहीं की तो मैं आत्महत्या कर लूंगा और भूत बन कर तुम्हारे पिता को परेशान करूंगा’ श्रीमान जी ने अपनी प्रेमिका से कहा ‘कोई फायदा नहीं मेरे पिताजी को भूत प्रेत और पर धेले भर का विश्वास नहीं है’ प्रेमिका ने उत्तर दिया।
तमाम रास्ते हैं ‘डुमना एयरपोर्ट’ से पैसे कमाने के…
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