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आदिवासी जमीनों के फर्जीवाड़े के खेल में सरकारी महकमा के लोगों की भी हिस्सेदारी, कैसे होगी इन पर कार्यवाही

उप पंजीयक नंदिता और जितेंद्र ने क्यों नहीं किया मूल दस्तावेजों का मिलान, पटवारी रोहित खरे ने जानकारी होते हुए भी क्यों तैयार किया नक्शा ?

जबलपुर (जय लोक)।एक बार फिर जबलपुर जिले में आदिवासी समुदाय के लोगों के साथ छल कपट कर फर्जी दस्तावेज बनाकर उनकी जमीन हड़पने का मामला सामने आया है। सूत्रों के अनुसार दलालों के माध्यम से जमीन के खरीदारों तक सौदा पहुंचा। इसके बाद आदिवासी जनजाति के गौड़  लोगों की भूमि को जाति बदलकर राजपूत के नाम से करने का पूरा खेल रचा गया। सबसे चौंकाने वाली बात है कि पटवारी हल्का नंबर पुराना 28 नया 36 के खसरा क्रमांक 27/1 रकबा 0.04800हे, पर जिन आदिवासी लोगों के नाम दर्ज थे उनमें से धरमू गौड़ की मौत सन 2016 में हो चुकी है। इसी खसरे में शामिल एक महिला समलों बाई की मौत भी 15/10/13 को हो चुकी है । लेकिन इनको जीवित बताते हुए 3 मार्च 2023 को बैनामा करते समय फर्जी लोगों को खड़ा कर रजिस्ट्री कर दी गई।
विक्रेताओं को तो जानकारी ही नहीं थी कि उनकी भूमि बिना उनकी मर्जी के बेची जा रही है और आदिवासी समुदाय के लोग ठगे जा रहे हैं।
अनुविभागीय अधिकारी राजस्व अभिषेक सिंह ठाकुर के आदेश में आवेदकों की ओर से की गई शिकायत का उल्लेख है जिसमें यह कहा गया है कि उप रजिस्ट्रार जबलपुर नंदिता श्रीवास्तव ने बगैर मूल दस्तावेजों का मिलान करते हुए बैनामा रजिस्टर्ड कर दिया। आखिर यह अनदेखी क्यों की गई? आदिवासी की भूमि पर राजपूत जाति के व्यक्ति क्या इतनी आसानी से बैनामा करने के लिए स्वतंत्र है ? आखिर खसरा में फिर बादल का खेल कैसे हो गया ?
शिकायत में पटवारी रोहित खरे पर भी गंभीर आरोप लगे हैं कि आखिर उसे जब यह जानकारी थी कि उक्त भूमि आदिवासी लोगों की भूमि है और उसे विवादित भूमि पर जो नक्शा तैयार किया गया वह यह जानते हुए किया गया कि यह भूमि राजपूत की भूमि नहीं है। इसी वजह से बैनामा रजिस्टर्ड होने की प्रक्रिया में आगे बढ़ा । यह संभव भी नहीं माना जा रहा है कि पटवारी को इस बात की जानकारी नहीं है क्योंकि आदिवासी समुदाय की भूमि को लेकर वैसे ही राजस्व विभाग के कर्मचारियों से लेकर वरिष्ठ अधिकारी तक अतिरिक्त एतियात बरतते हैं।  फिर कैसे पटवारी ने उक्त विवादित भूमि का नक्शा तैयार कर दिया।
एसडीएम ने अपनी जांच में यह पाया है कि दस्तावेजों की कूट रचना की गई। मृतक व्यक्तियों को जीवित बताकर उनकी जगह दूसरे व्यक्तियों को बनाने के समय उपस्थित कर गलत तरीके से रजिस्ट्री करवाई गई। अब सवाल यह उठता है कि फर्जी दस्तावेजों को बनाने और सत्यापित करने का काम शासकीय कर्मचारी और अधिकारियों द्वारा क्यों किया गया। इन की भूमिका की भी उतनी ही जांच होनी चाहिए।
इसके पूर्व में जबलपुर तहसील के अनुविभागीय अधिकारी पीके सेनगुप्ता ने भी इस प्रकार के कई मामलों में सख्ती से आदेश जारी किए थे। कई आदिवासी जमीनों को सुनवाई के  उपरांत उनके मूल धारकों को वापस लौटने का कार्य किया गया था।

नोटिस के बाद भी उपस्थित नहीं हुए न्यायालय में

जारी आदेश में इस बात का भी उल्लेख है कि अनुविभागीय अधिकारी ने संबंधित पक्षकार जिनमें कई क्रेताओं के साथ-साथ रजिस्ट्री प्रारूपकर्ता उमा देवी सिंह, उपपंजीयक नंदिता श्रीवास्तव, उप पंजीयक जितेंद्र राय, रजिस्ट्री कर्ता नमन कुमार जैन आदि को नोटिस जारी किए गए थे। लेकिन कोई भी पेशी में न्यायालय में उपस्थित नहीं हुआ।
इस प्रकार से फर्जी दस्तावेजों के प्रचलन को ना पकडऩा और लापरवाही से ऐसे नजरअंदाज करना ही ऐसी धोखाधड़ी की घटनाओं को बढ़ावा देता है। पटवारी रोहित खरे लंबे अरसे से इसी क्षेत्र के इर्द-गिर्द के हल्कों में पदस्थ रहे हैं। यह खुद का अपना ऑफिस तहसील के बाजू में स्थित एक अपार्टमेंट में चलाते हैं और अपने अधीनस्थ प्राइवेट लोगों को तैनात कर काम करते हैं। इस बात की शिकायत भी कई बार वरिष्ठ अधिकारियों तक पहुंची है। जब एक बार फिर आदिवासी लोगों के हितों को मारते हुए किसी को अनुचित लाभ पहुंचाने की नीयत से किया गया कृत्य निकलकर फिर सामने आ गया है। जानबूझकर आदिवासी समाज की जमीन होने की जानकारी होने के बावजूद भी कैसे बिना सक्षम अनुमति के खसरे में नाम बदल गए ? कैसे बैनामा के लिए विवादित भूमि का नक्शा बनाकर तैयार किया गया? यह सभी आरोप आवेदक ने अपनी शिकायत में पटवारी  पर लगाए हैं। इन बातों का उल्लेख अनुविभागीय अधिकारी द्वारा जारी आदेश में भी आया है।

आदिवासी जमीन के खेल में धोखाधड़ी के शिकार हुए वरिष्ठ पत्रकार गंगा पाठक

दलाल रमाकांत ने करवाई थी आदिवासी की जमीन को सामान्य बताकर रजिस्ट्री 2023 में ही पुलिस को कर दी थी धोखाधड़ी की शिकायत

(जय लोक)। जबलपुर तहसील के अनुविभागीय अधिकारी अभिषेक सिंह ठाकुर  द्वारा कल तीन प्रकरणों में आदिवासी भूमि पर किए गए फर्जीवाड़े के आधार पर क्रय विक्रय को शून्य घोषित कर रजिस्ट्रियां शून्य करने के आदेश दिए गए और मूल रूप से आदिवासियों का नाम ही उक्त भूमि में चढ़ा दिया गया।
इन तीन प्रकरणों में से एक प्रकरण में शहर के वरिष्ठ पत्रकार गंगा पाठक भी क्रेता के रूप में धोखाधड़ी के शिकार हो गए हैं। भूमि की दलाली करने वाला रमाकांत सतनामी जो पूर्व में भी गंगा पाठक के लिए खरीद फरोख्त का काम करता था यही रमाकांत सतनामी उनके पास उक्त भूमि को क्रय करने का सौदा लेकर आया था। रमाकांत पाठक ने शुरू से ही इस बात को छुपाया कि वह भूमि आदिवासी है और उसे किसी और के नाम पर दस्तावेजों के माध्यम से तैयार किया गया है। इस बात की जानकारी उन्हें नहीं थी। दलाल द्वारा उन्हें यही बताया गया था कि उक्त भूमि किसी राजपूत की है और वह उसे विक्रय करना चाहता है। इस संबंध में उन्होंने चेक के माध्यम से भुगतान किया है , जो कि भूमि स्वामी वीरेंद्र सिंह राजपूत और उसके भाई चंदन सिंह राजपूत को किए गए हैं। उन्होंने साढ़े 17 लाख रुपए भुगतान किया था और उसके बाद एक चेक 300000 का और  दूसरा चेक ढाई लाख रुपए का दिया था। इसके अलावा उन्होंने ?900000 का एक पोस्ट डेटेड चेक भी दिया था। इसके बाद उक्त भूमि की रजिस्ट्री मेरे नाम पर हो गई थी आगे की प्रक्रिया में जब नामांतरण के लिए आवेदन दिया गया तब यह जानकारी सामने आई कि उक्त भूमि आदिवासी की है और किसी और ने धोखाधड़ी से फर्जी दस्तावेजों की रचना कर इसे मुझे बेच दिया है। उक्त संबंध में श्री गंगा पाठक की ओर से 9 अगस्त 2023 को ही जबलपुर पुलिस अधीक्षक को एक शिकायत प्रस्तुत की गई थी जिसमें धोखाधड़ी करने वालों के खिलाफ कार्यवाही की मांग की गई है।

 

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Jai Lok
Author: Jai Lok

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